इंसुलिन रेजिस्टेंस तब होता है जब ग्लूकोज की अधिकता ब्लड सेल्स की एनर्जी के लिए ब्लड ग्लूकोज को एब्जॉर्ब करने और इस्तेमाल करने की क्षमता को कम कर देती है। जब आपके शरीर का इंसुलिन रेजिस्टेंस ज्यादा होता है, तो ब्लड शुगर लेवल को बैलेंस करने के लिए आपके पैंक्रियाज(अग्न्याशय) पर ज्यादा इंसुलिन प्रोड्यूज करने का दबाव पड़ता है। इस कारण आपके शरीर में इंसुलिन का प्रोडक्शन बहुत कम या ज्यादा हो सकता है। जिससे हार्ट डिजीज और डायबिटीज जैसी कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
इंसुलिन रेजिस्टेंस डाइट सहित कई ऐसी चीजें हैं जो नेचुरल तरीके से इसमें सुधार करती हैं।
कोई भी हेल्थ प्रॉब्लम आपके हेल्थ को खराब करने से पहले आपके शरीर में कई विजिबल या इनविजिबल बदलाव लाती है। ऐसा तब भी होता है जब आपको टाइप-2 डायबिटीज का पता चलता है। डायबिटीज का इलाज होने से पहले आपके शरीर में कई बदलाव होते हैं। उनमें से एक है इंसुलिन रेजिस्टेंस। आपका शरीर बिना कोई लक्षण दिखाए इंसुलिन रेजिस्टेंस हो सकता है। यह वह कंडीशन है जो आगे चलकर डायबिटीज में बदल जाती है।
इसलिए रेगुलर अपने ब्लड शुगर लेवल की मॉनिटरिंग करना जरूरी है।
इंसुलिन रेजिस्टेंस क्या है?
इंसुलिन एक जरूरी हार्मोन है जिसे पैंक्रियाज (अग्न्याशय) आपके शरीर में रिलीज करता है। यह आपके ब्लड फ्लो में जरूरी न्यूट्रीशन को रेगुलेट करने में मदद करता है। इंसुलिन कोशिकाओं को ग्लूकोज एब्जॉर्ब करने और इस्तेमाल करने की अनुमति देता है। यह आपके शरीर में ब्लड शुगर लेवल को बनाए रखने में मदद करता है। कभी-कभी आपकी मांसपेशी,फैट और लीवर सेल्स इंसुलिन के लिए अच्छा रिएक्शन नहीं देती हैं। उन्हें एनर्जी के लिए आपके ब्लड से ग्लूकोज का इस्तेमाल करने में भी दिक्कत होती है। यह स्थिति इंसुलिन रेजिस्टेंस है।
इंसुलिन रेजिस्टेंस- डायबिटीज डेवलप होने का खतरा
यह एक ऐसा फैक्टर है जो प्री-डायबिटीज, टाइप-2 डायबिटीज और जेस्टेशनल डायबिटीज की ओर ले जाता है। कभी-कभी कोई पीड़ित बिना जानकारी के कई सालों तक इंसुलिन रेजिस्टेंस से पीड़ित हो सकता है। यह कंडीशन किसी भी लक्षण को ट्रिगर नहीं करती है। यदि आपको हाई-ब्लड शुगर लेवल, हाई-ट्राइग्लिसराइड्स और हाई-कोलेस्ट्रॉल लेवल हैं तो आपके डॉक्टर को इंसुलिन रेजिस्टेंस पर संदेह हो सकता है। इसलिए आप अपना ब्लड ग्लूकोज लेवल टेस्ट कराते रहें।
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इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण
इंसुलिन रेजिस्टेंस का सटीक कारण अभी भी नहीं पता है। व्यक्तियों में इंसुलिन रेजिस्टेंस होने के लिए कुछ रिस्क फैक्टर्स हैं। इनमें से कुछ फैक्टर नीचे दिए गए हैं-
- हाई-कैलोरी, हाई-कार्बोहाइड्रेट, और हाई-शुगर डाइट
- क्रोनिक डिजीज
- ओवरवेट
- बहुत कम या बिलकुल भी फिजिकल एक्टिविटी नही
- लंबे समय तक स्टेरॉयड की हाई-डोज लेना
इनके साथ-साथ कुछ दवाएं,हाई-इंसुलिन लेवल, लीवर और पैंक्रियाज में स्टोर फैट भी इंसुलिन रेजिस्टेंस होने के कुछ कारण हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ का कहना है कि वजन ज्यादा होने और किसी भी तरह की फिजिकल एक्टिविटी न होने से इंसुलिन फ़ंक्शन ख़राब हो जाता है। 40 इंच से ज्यादा कमर वाले पुरुष और 35 इंच से अधिक कमर वाली महिलाओं में इंसुलिन रेजिस्टेंस की संभावना ज्यादा होती है।
कैसे इंसुलिन रेजिस्टेंस टाइप 2 डायबिटीज का कारण बनता है?
जब आपका शरीर इंसुलिन रेजिस्टेंसी होता है, तो यह एक ऐसे ताले की तरह होता है जो चाबी के साथ अच्छी तरह से काम नहीं करता है। इंसुलिन आपके भोजन से शुगर को आपके शरीर की कोशिकाओं(सेल्स) में भेजता है।
रेजिस्टेंस(रेजिस्टेंस) की भरपाई के लिए सबसे पहले आपके शरीर का इंसुलिन उत्पादन बढ़ता है। इससे आपका ब्लड शुगर लेवल सामान्य रहता है। लेकिन समय के साथ चीजें बदल जाती हैं। आपका शरीर हमेशा अतिरिक्त इंसुलिन नहीं बना सकता। कोशिकाएं इंसुलिन का विरोध करती हैं और शुगर अंदर नहीं जा पाती है। इसका मतलब है कि आपका ब्लॉक शुगर लेवल बढ़ना शुरू हो गया है।
हाई-ब्लड शुगर एक समस्या है जो आपकी नसों और ब्लड वाहिकाओं(वेसल्स) को प्रभावित करती है। इस नुकसान को रोकने के लिए आपके अग्न्याशय(पैंक्रियाज) को अधिक इंसुलिन का उत्पादन करने के लिए और ज्यादा काम करना पड़ेगा।
यदि आपका ब्लड शुगर लेवल लगातार बढ़ता है तो आपके डॉक्टर यह पता कर सकते हैं कि आपको टाइप 2 डायबिटीज है।
सीधे शब्दों में कहें तो इंसुलिन रेजिस्टेंस डायबिटीज शरीर की कोशिकाओं में खराब इंसुलिन सेंसटिविटी के कारण होता है। जिस कारण से ब्लड शुगर लेवल बढ़ता है और जब आपका शरीर इसे मेंटेन नहीं रख पाता है तो यह टाइप 2 डायबिटीज में बदल जाता है।
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इंसुलिन रेजिस्टेंस के सिम्पटम्स (लक्षण)
जैसा कि ऊपर बताया गया है इंसुलिन रेजिस्टेंस वाले व्यक्ति को लंबे समय तक कोई सीरियस सिंपटम दिखाई नहीं दे सकते हैं। जब यह डायबिटीज में बदला जाता है तो उसमें लक्षण दिखाई दे सकते हैं। प्री-डायबिटीज से पीड़ित ज्यादातर लोग इस बात से अनजान हैं कि उन्हें यह समस्या है।
इंसुलिन रेजिस्टेंस कुछ ऐसे विजिबल कंडीशन को जन्म देता है-
एकेंथोसिस नाइग्रिकन्स- यह एक नॉर्मल स्किन कंडीशन है, जो सामान्य इंसुलिन रेजिस्टेंस लक्षण के रूप में जाना जाता है। इंसुलिन रेजिस्टेंस वाले लोगों में आर्मपिट, कमर और गर्दन के पिछले हिस्से पर काले धब्बे बन जाते हैं।
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस)- यदि आपको पीसीओएस है तो आपको पीरियड्स में दिक्कत और इनफर्टिलिटी (बांझपन) हो सकता है। पीसीओएस से पीड़ित लोगों में जब इंसुलिन रेजिस्टेंस हो जाता है तो उनके लिए ये काफी खराब कंडीशन हो जाती है।
यदि आपके ब्लड फ्लो में इंसुलिन लेवल हाई है,आपका वजन ज्यादा हैं, आपको बार-बार पेशाब जाना पड़ता हैं, या आपकी स्किन ड्राई है तो आपका डॉक्टर आपको इंसुलिन रेजिस्टेंस से डायग्नोस कर सकता है।
इनके अलावा आप इंसुलिन रेजिस्टेंस के निम्नलिखित लक्षण भी देख सकते हैं-
- भूख में वृद्धि (इंसुलिन रेजिस्टेंस के विशिष्ट लक्षणों में से एक)
- थकान
- वजन बढ़ना
- जल्दी पेशाब आना
- ज्यादा प्यास लगना
- कंसंट्रेशन में परेशानी
- हाई-ब्लड प्रेशर
- हाई-ट्राइग्लिसराइड लेवल
- अनियमित मासिक चक्र(पीरियड्स)
इंसुलिन रेजिस्टेंस टेस्ट
सारांश
आपके शरीर में इंसुलिन रेजिस्टेंस है या नहीं इसका पता लगाने के लिए आप हीमोग्लोबिन ए1सी टेस्ट, फास्टिंग ग्लूकोज टेस्ट या रैंडम ग्लूकोज टेस्ट ले सकते हैं। इससे आपको सावधानी बरतने और लाइफस्टाइल में बदलाव करने में मदद मिलेगी। यह टाइप-2 डायबिटीज और उससे जुड़ी समस्याओं को होने से रोकता है।
आपकी इंसुलिन सेंसटिविटी पता करने के लिए अभी तक कोई अलग से टेस्ट नहीं है। आपके डॉक्टर आपको प्री-डायबिटीज और डायबिटीज के लिए नीचे दिए गए कुछ टेस्ट कराने को कह सकते हैं-
हीमोग्लोबिन ए1सी टेस्ट
यह डायबिटीज के लिए एक सरल ब्लड टेस्ट है। यह टेस्ट आपको पिछले दो तीन महीनों में एवरेज ब्लड शुगर लेवल बताता है। यह टेस्ट आपके प्री-डायबिटीज और डायबिटीज का पता करने के लिए ग्लाइकेटेड फॉर्म हीमोग्लोबिन को मापता है। जब आपके हीमोग्लोबिन ए1सी टेस्ट की टेस्ट वैल्यू 4% और 5.6% के बीच होता है तो आप नॉर्मल रेंज में होते हैं। यदि आपके हीमोग्लोबिन ए1सी का लेवल 5.7% और 6.3% के बीच है तो आप इंसुलिन रेजिस्टेंस हैं। तब आपको डायबिटीज होने का खतरा ज्यादा है।
फास्टिंग(उपवास) ग्लूकोज टेस्ट
फास्टिंग(उपवास) ब्लड ग्लूकोज टेस्ट भी प्री-डायबिटिक और डायबिटीज का पता करने के लिए एक ब्लड टेस्ट है। टेस्ट के सही रिजल्ट मिलने के लिए एक व्यक्ति को रात भर या कम से कम 8-10 घंटे का फास्टिंग(उपवास) करना होगा। नॉर्मल फास्टिंग(उपवास) ब्लड शुगर लेवल 70 मिलीग्राम/डीएल और 100 मिलीग्राम/डीएल के बीच होता है। यदि आपके ब्लड टेस्ट का रिजल्ट 101 मिलीग्राम/डीएल और 125 मिलीग्राम/डीएल के बीच है तो आपका शरीर इंसुलिन रेजिस्टेंस हो सकता है या आपको प्री-डायबिटीज है।
रैंडम ब्लड शुगर टेस्ट
आप दिन में किसी भी समय यह ब्लड टेस्ट करा सकते हैं। यह टेस्ट किसी व्यक्ति के ब्लड में सर्कुलेट होने वाली शुगर काउंट बताता है। यह तय करने के लिए कि क्या आपको प्री-डायबिटीज या डायबिटीज है डॉक्टर आपको यह टेस्ट कराने के लिए कह सकते हैं। 70 मिलीग्राम/डीएल और 150 मिलीग्राम/डीएल के बीच ब्लड शुगर टेस्ट का टेस्ट वैल्यू नॉर्मल है। यदि इस टेस्ट में आपका ब्लड शुगर लेवल नॉर्मल से ज्यादा है, तो आपका शरीर इंसुलिन रेजिस्टेंस है। साथ ही आपके शरीर में प्री-डायबिटीज या डायबिटीज डेवलप होने के चांस हैं।
ऊपर दिए गए वैल्यू अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के निष्कर्षों पर आधारित हैं।
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इंसुलिन रेजिस्टेंस और डायबिटीज के बीच अंतर
डायबिटीज और खराब इंसुलिन सेंसटिविटी एक दूसरे से संबंधित हैं, लेकिन हमारे शरीर द्वारा ग्लूकोज को संभालने के तरीके के बारे में बात करने पर ये अलग-अलग भी होते हैं।
इंसुलिन रेजिस्टेंस एक ऐसी स्थिति है जहां इंसुलिन के प्रति आपकी कोशिकाओं की प्रतिक्रिया ख़राब हो जाती है। इंसुलिन रेजिस्टेंस होना उस ताले के समान है जो थोड़ा जिद्दी होता है और इंसुलिन “चाबी” से आसानी से नहीं खुलता है।
इंसुलिन सिंड्रोम लंबे समय तक मौजूद रह सकता है। ये डायबिटीज का कारण नहीं है, लेकिन यह रिस्क फैक्टर जरूर है।
डायबिटीज हाई-ब्लड शुगर लेवल वाली कंडीशन है। डायबिटीज अलग-अलग प्रकार के हैं और टाइप 2 डायबिटीज बिगड़े हुए इंसुलिन सेंसटिविटी से जुड़े सबसे सामान्य डायबिटीज में से एक है।
इंसुलिन फंक्शन खराब होने के कारण शरीर इंसुलिन का ठीक से उपयोग नहीं कर पाता है और अग्न्याशय(पैंक्रियाज) इस रेजिस्टेंस की भरपाई के लिए जरूरी इंसुलिन का प्रोडक्शन करने में असमर्थ होता है। इससे ब्लड शुगर का लेवल लगातार हाई रहता है। जिसका ठीक से मैनेजमेंट न किया जाए तो कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं।
जिस सटीक सीमा पर खराब इंसुलिन फंक्शन डायबिटीज का कारण बनता है वह अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग होता है।
यदि दो अलग-अलग परीक्षणों(टेस्ट) में आपका उपवास(फास्टिंग) ब्लड शुगर लेवल 126 मिलीग्राम/डीएल से ज्यादा है तो इसका मतलब है कि आपको डायबिटीज है।
खराब इंसुलिन एक्शन का मतलब है कोशिकाओं की इंसुलिन के लिए काम करने में गड़बड़ी। पूरी तरह से डायबिटीज में इंसुलिन रेजिस्टेंस का विकास बीच-बीच में प्री-डायबिटीज के साथ ही धीरे-धीरे होता है।
इंसुलिन रेजिस्टेंस से कौन प्रभावित हो सकता है?
कमजोर इंसुलिन सेंसटिविटी एज ग्रुप की परवाह किए बिना लोगों की एक लंबी चेन को प्रभावित करती है। ये ऐसे कारक हैं जो कमजोर(अप्रभावी) इंसुलिन एक्शन की संभावना को बढ़ा सकते हैं।
ओबिसिटी(मोटापा)- फैट का इकट्ठा होना (विशेष रूप से पेट के आसपास) इंसुलिन रेजिस्टेंस का कारण बन सकता है।
खराब लाइफस्टाइल- इंसुलिन रेजिस्टेंस का प्रमुख कारण किसी भी फिजिकल एक्टिविटी में शामिल न होना है।
आनुवंशिकी(जेनेटिक)- यदि आपके परिवार में डायबिटीज या इंसुलिन रेजिस्टेंस किसी को भी रहा है तो संभावना है कि आपमें भी यह हो सकता है।
ख़राब डाइट- हाई-शुगर, रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और अनहेल्दी फैट वाला डाइट इंसुलिन के प्रभाव को कम कर सकता है।
मेडिकल कंडीशन- पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस), हाई-ब्लडप्रेशर और हार्ट डिजीज(कार्डियोवैस्कुलर) कंडीशन इंसुलिन के रेजिस्टेंस से जुड़ा हो सकता है।
उम्र(एज)- इंसुलिन की ख़राब क्रिया उम्र के साथ बढ़ती जाती है।
इन जोखिम कारकों(रिस्क फैक्टर्स) के बारे में जागरूक होना और इंसुलिन सेंसटिविटी को बढ़ावा देने वाली लाइफस्टाइल अपनाना जरूरी है जैसे कि हेल्दी वजन बनाए रखना, शारीरिक रूप से एक्टिव रहना और बैलेंस डाइट लेना,ताकि कमजोर इंसुलिन फ़ंक्शन और टाइप 2 डायबिटीज में इसके जोखिम को कम किया जा सके।
आपके डॉक्टर इंसुलिन रेजिस्टेंस के लिए दवा का सुझाव दे सकते हैं। लेकिन दवा खाना सबसे अच्छा तरीका नहीं हो सकता है। आप ब्रीद वेल बीइंग के साथ डायबिटीज और इंसुलिन रेजिस्टेंस को दूर करने के लिए हमेशा प्राकृतिक तरीका चुन सकते हैं।
हमारे एक्सपर्ट आपको इंसुलिन रेजिस्टेंस को दूर करने और आसानी से (100% प्राकृतिक और सुरक्षित) हेल्दी लाइफस्टाइल में वापस आने के बारे में गाइड कर सकते हैं।
इंसुलिन रेजिस्टेंस कितना सामान्य है?
इंसुलिन अप्रभावीता(इनइफेक्टिवनेस) एक ऐसी कंडीशन है। जो विश्व स्तर पर आबादी के एक बड़े हिस्से (लाखों) को प्रभावित करती है और यह पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ रही है।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद(आईसीएमआर) के साथ मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, लगभग 101 मिलियन भारतीयों में डायबिटीज पाया गया है, और लगभग 136 मिलियन को प्री-डायबिटीज है।
इसका सीधा मतलब यह है कि खराब इंसुलिन एक्शन(कार्य) वाले लोगों की संख्या ऊपर बताई गई संख्याओं की तुलना में बहुत ज्यादा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि खराब इंसुलिन क्रिया केवल डायबिटीज ही नहीं और भी दूसरी समस्याएं लाता है।
इंसुलिन का रेजिस्टेंस वयस्कों(एडल्ट) तक ही सीमित नहीं है। यह बच्चों और किशोरों को भी प्रभावित कर सकता है। विशेषकर उन लोगों को जो ज्यादा वजन से परेशान हैं। कुछ मामलों में यह बच्चों में एक बड़ी समस्या बन गई है।
बढ़ती इंसुलिन सेंसटिविटी चिंता की एक बड़ी बात है क्योंकि यह टाइप 2 डायबिटीज, हार्ट डिजीज(कार्डियोवैस्कुलर) और दूसरी हेल्थ समस्याओं का कारण बनती है।
इंसुलिन रेजिस्टेंस किस प्रकार शरीर को प्रभावित करता है?
खराब इंसुलिन क्रिया इस तरह से प्रभाव डाल सकती है जिसे आप समझ नहीं सकते हैं और यह टाइप 2 डायबिटीज से भी आगे बढ़ सकता है। खराब इंसुलिन फ़ंक्शन से संबंधित कुछ और भी हेल्थ प्रॉब्लम यहां दी गई हैं-
हार्ट से जुड़ी समस्या(कार्डियोवैस्कुलर)
इंसुलिन की समस्या धीरे-धीरे हार्ट डिजीज, हाई-ब्लड प्रेशर और खराब लिपिड प्रोफाइल का कारण बन सकती है। यह धमनियों (एथेरोस्क्लेरोसिस) में फैट जमा होने में योगदान दे सकता है। जिससे दिल का दौरा और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
ओबिसिटी(मोटापा)
ज्यादा वजन वाले लोगों में इंसुलिन फ़ंक्शन में गड़बड़ी पाई जाती है। इससे वजन कम करना कठिन हो सकता है क्योंकि फैट ऐसे हिस्सों में जमा हो जाता और इसे फिर गलाना(बर्न करना) मुश्किल हो सकता है।
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस)
पीसीओएस से पीड़ित कई महिलाओं में इंसुलिन सेंसटिविटी ख़राब हो जाती है। यह पीसीओएस के लक्षणों जिसमें अनियमित मासिक धर्म, बांझपन और बालों का अधिक बढ़ना शामिल है को खराब कर सकता है।
नॉन-अल्कोहलिक फैटी लीवर रोग(एनएफएलडी)
इंसुलिन का कम रिस्पॉन्स एक चिंता का विषय है और एनएएफएलडी का एक प्रमुख फैक्टर भी है। यह एक ऐसी कंडीशन है जहां शरीर की चर्बी लीवर में जमा होने लगती है और इससे लीवर की गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
मेटाबोलिक सिंड्रोम
इंसुलिन रेजिस्टेंस का प्रभाव दूसरी हेल्थ प्रॉब्लम समस्याओं जैसे मोटापा(वजन बढ़ना), हाई-ब्लडप्रेशर और खराब कोलेस्ट्रॉल लेवल के साथ होता है। इस एडजस्टमेंट को मेटाबोलिक सिंड्रोम के रूप में जाना जाता है। जिससे हार्ट डिजीज और टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।
सूजन
इंसुलिन की समस्या शरीर में पुरानी सूजन को ट्रिगर कर सकती है। जो कैंसर सहित विभिन्न बीमारियों से जुड़ी है।
किडनी की समस्या
बिगड़ा हुआ इंसुलिन किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है और क्रोनिक किडनी डिजीज का खतरा बढ़ा सकता है।
न्यूरोलॉजिकल इफेक्ट
कुछ रिसर्च से पता चलता है कि खराब इंसुलिन क्रिया अल्जाइमर रोग जैसी कंडीशन का रिस्क बढ़ा सकती है।
नींद में खर्राटे की समस्या
इंसुलिन की समस्या और स्लीप एपनिया(नींद में खर्राटे) के बीच एक संबंध है। यह एक ऐसा रोग है जिसमें नींद के दौरान सांस लेने में दिक्कत होती है।
धमनियों(आर्टरीज) का टाइट(सख़्त) होना (एथेरोस्क्लेरोसिस)
खराब इंसुलिन सेंसटिविटी ब्लड शुगर को बढ़ा देती है। जिससे धमनी की परत को नुकसान होता है। इस वजह से सूजन और प्लाक को ट्रिगर करती है। धमनियों(आर्टरीज) का ब्लॉकेज होने से हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ जाता है।
हाई-ट्राइग्लिसराइड लेवल
इंसुलिन रिसेप्टर की कमी से लीवर में ट्राईग्लिसराइड का प्रोडक्शन बढ़ सकता है। ब्लड फ्लो से इसकी निकासी कम हो सकती है जिस कारण ट्राइग्लिसराइड का लेवल बढ़ जाता है।
यह पहचानना जरूरी है कि बिगड़ा हुआ इंसुलिन कार्य एक अलग मुद्दा नहीं है बल्कि मेटाबॉलिज्म सिंड्रोम का हिस्सा है। जो ओवरऑल हेल्थ पर जरूरी प्रभाव डालता है।
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इंसुलिन रेजिस्टेंस से छुटकारा पाने के तरीके
सारांश
अपने कार्ब्स और शुगर कम करें, पानी और फाइबर वाले फूड ज्यादा लें, पर्याप्त नींद लें, रेगुलर एक्सरसाइज करें, वेट मैनेजमेंट, रुक-रुक कर फास्टिंग(उपवास) करना और सैचुरेटेड फैट से परहेज करना ऐसे तरीके हैं जो आपको इंसुलिन रेजिस्टेंस से छुटकारा दिलाने में मदद कर सकते हैं। एक बार जब आपका शरीर इंसुलिन के प्रति सेंसटिव हो जाता है, तो आप टाइप-2 डायबिटीज और उसके बाद होने वाली बीमारियों को बढ़ने से रोक सकते हैं। आपको अपनी इंसुलिन सेंसटिविटी को बेहतर बनाने के लिए इन रणनीतियों को सही तरीके से लागू करना होगा।
इंसुलिन रेजिस्टेंस से छुटकारा पाने के कुछ अनोखे तरीके हैं-
कार्बोहाइड्रेट का इस्तेमाल कम करें
बहुत ज्यादा सिंपल कार्बोहाइड्रेट लेने से आपके शरीर में ग्लूकोज का लेवल बढ़ जाता है(हाइपरग्लाइसेमिया)। आपका शरीर सरल कार्बोहाइड्रेट के टूटने के कारण बनने वाले ग्लूकोज की बड़ी मात्रा को स्टोर नहीं कर पाता है। आपके शरीर द्वारा एक्स्ट्रा ग्लूकोज का इस्तेमाल ना कर पाने से इंसुलिन रेजिस्टेंस होता है। इसलिए इंसुलिन रेजिस्टेंस को कम करने के लिए कार्बोहाइड्रेट वाले भोजन का इस्तेमाल कम करें।
शुगर का सेवन कम करें
इंसुलिन रेजिस्टेंस या प्री-डायबिटिक जैसी किसी भी इंसुलिन-आधारित स्थिति का मुख्य कारण शुगर है। शुगर ज्यादा इस्तेमाल करने से ब्लड शुगर का लेवल बढ़ जाता है। यह आपके शरीर में ब्लड शुगर लेवल को कम करने के लिए ज्यादा इंसुलिन का प्रोडक्शन करने की मांग को बढ़ाता है जिससे इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ता है। इसलिए आपको मीठा कम से कम खाना चाहिए।
अच्छी और भरपूर नींद लें
नींद की कमी से कोर्टिसोल और अन्य हार्मोन जैसे थायराइड और टेस्टोस्टेरोन बढ़ जाते हैं। यह आपके शरीर की कोशिकाओं(सेल्स) को इंसुलिन रेजिस्टेंस बनाता है और ब्लड शुगर लेवल को बढ़ाता है। इसलिए इंसुलिन सेंसटिविटी में सुधार के लिए लगभग 7-8 घंटे की पर्याप्त और अच्छी नींद लें। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जो लोग थोड़ी देर के लिए पर्याप्त नींद नहीं लेते हैं, वे अपने शरीर में शुगर को संभालने के तरीके को गड़बड़ा सकते हैं। जब लोग एक दिन या उससे अधिक समय तक बिना सोए रहते हैं, तो उनका शरीर इंसुलिन का उपयोग करने में कम सक्षम हो जाता है। पर्याप्त नींद न लेने से उनके अग्न्याशय के लिए भोजन करते समय इंसुलिन का उत्पादन करना कठिन हो जाता है।
तनाव को खुद से दूर रखें
तनाव से लड़ने और दूर करने के लिए आपके शरीर को ज्यादा एनर्जी की जरूरत होती है। हाई-स्ट्रेस लेवल इंसुलिन उत्पादन करने वाली कोशिकाओं के काम को प्रभावित करता है और इंसुलिन उत्पादन को कम करता है।जब आप स्ट्रेस में होते हैं तो आपका अग्न्याशय शरीर की ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए ज्यादा काम करता है और थक जाता है। यह ब्लड शुगर लेवल को बढ़ाता है और इंसुलिन रेजिस्टेंस को एक्टिव करता है। इसलिए आपको स्ट्रेस फ्री रहने की कोशिश करनी चाहिए। ज़्यादा न सोचें, पॉजिटिव रहें, मेडिटेशन, योग आदि जैसी तकनीकों को आज़माएँ और उस स्थिति के साथ तालमेल बिठाएँ जिसे आप बदल नहीं सकते।
नियमित एक्सरसाइज करें
एक्सरसाइज आपके शरीर को फिट और हेल्दी रखने का सबसे अच्छा तरीका है। जब ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने या इंसुलिन रेजिस्टेंस में सुधार करने की बात आती है तो एक्सरसाइज सबसे जरूरी है। आप अपनी फिजिकल एक्टिविटी को बढ़ाने के लिए पैदल चल सकते हैं, साइकिल चला सकते हैं, तैर सकते हैं, लो-इंटेंसिटी वाले एक्सरसाइज कर सकते हैं। आप अपने शरीर को फ्लेक्सिबल रखने के लिए डांस भी कर सकते हैं।
हाई-फाइबर डाइट
जिनमें फाइबर नहीं होता है वे ग्लूकोज रिलीज करते हैं। इसलिए आपका शरीर ग्लूकोज एबजॉरबेशन रेट में तेजी चाहता है। यह अग्न्याशय पर ज्यादा इंसुलिन प्रोड्यूज करने के लिए दबाव डालता है जो अंत में इंसुलिन इंसेंसटिविटी को बढ़ाता है। फाइबर वाले भोजन खाने से आपकी इंसुलिन सेंसटिविटी में सुधार करने में मदद मिलती है। हाई फाइबर वाला भोजन आपके ब्लड शुगर लेवल को बढ़ने से रोकता है।
खूब पानी पियें
आपके शरीर से एक्स्ट्रा टॉक्सिन को बाहर निकालने के लिए आपके शरीर को पानी की जरूरत होती है। टॉक्सिन के साथ-साथ आपका शरीर एक्स्ट्रा ब्लड ग्लूकोज को भी बाहर निकाल देता है। यह ज्यादा इंसुलिन के प्रोडक्शन के लिए अग्न्याशय पर पड़ने वाले बोझ को कम करता है। इसलिए इंसुलिन रेजिस्टेंस को रोकने के लिए दिन में खूब पानी पिएं। एक एडल्ट को हर दिन कम से कम 3 लीटर पानी पीना चाहिए।
अपना वजन कम करें
जब आपका शरीर ग्लूकोज का इस्तेमाल नहीं कर पाता है तो एक्स्ट्रा ग्लूकोज को एनर्जी के लिए खर्च करने के बजाय फैट के रूप में स्टोर करता है। यह आपके शरीर को इंसुलिन रेजिस्टेंट बनाता है और आपके शरीर का वजन बढ़ाता है। जब आप इंसुलिन रेजिस्टेंट होते हैं तो आपका मेटाबॉलिज्म एनर्जी के लिए कार्बोहाइड्रेट का इस्तेमाल करता है। इसलिए आपका शरीर ज्यादा शुगर चाहता है जिस कारण आपका वजन बढ़ता है। इंसुलिन सेंसटिविटी में सुधार के लिए आपको वजन कम करने की जरूरत है।
रुक-रुक कर फास्टिंग(उपवास)
रुक-रुक कर फास्टिंग(उपवास) करना इंसुलिन रेजिस्टेंस से छुटकारा पाने का एक और तरीका है। यह सरल है और इसको फॉलो करना आसान है। आप रात भर की फास्टिंग(उपवास) से शुरुआत कर सकते हैं और फिर अपने नाश्ते में समय ले सकते हैं। जब आप उपवास करते हैं तो इंसुलिन का लेवल नाटकीय रूप से गिर जाता है और इस प्रकार आपकी इंसुलिन सेंसटिविटी में सुधार होता है।
सैचुरेटेड फैट से बचें
सैचुरेटेड फैट आपके कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर लेवल दोनों को बढ़ाती है। ये हेल्दी नहीं हैं।अनसैचुरेटेड फैट का इस्तेमाल। अनसैचुरेटेड फैट तेल, नट्स और सीड्स में मौजूद होती है। अपने भोजन को हमेशा अनसैचुरेटेड फैट में पकाएं और इसमें चिया बीज, अखरोट, सूरजमुखी के बीज आदि शामिल करें। यह आपके ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करता है और इंसुलिन सेंसटिविटी को कम करने में मदद करता है।
ऐसे सुपरफूड जो आपके इंसुलिन रेजिस्टेंस से छुटकारा दिलाने में मदद करते हैं-
सारांश
प्रकृति(नेचर) ने हम इंसानों को ऐसी चीजें की सौगात दी है जिनमें बीमारियों के इलाज करने के गुण हैं। ऐसी ही कुछ चीजों में से लहसुन, अदरक, एप्पल साइडर विनेगर, दालचीनी और हल्दी हैं। ये वस्तुएं इंसुलिन रेजिस्टेंस से छुटकारा दिलाने और ओवरऑल हेल्थ में सुधार करने में मदद करती हैं। अपने शरीर पर इनका प्रभाव देखने के लिए इन वस्तुओं को नियमित थोड़ी सी मात्रा में लें।
जब आप हेल्दी लाइफस्टाइल की आदत बनाते हैं जैसे रोजाना एक्सरसाइज करते हैं और बेहतर खाना शुरू करते हैं, तब आप इंसुलिन रेजिस्टेंस से छुटकारा पा सकते हैं।
यहां कुछ सुपरफूड की लिस्ट दी गई है जो स्वाभाविक रूप से आपकी इंसुलिन रेजिस्टेंस से छुटकारा दिलाने में मदद करते हैं-
लहसुन(गार्लिक)
लहसुन में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं जो आपके शरीर में इंसुलिन सिक्रेशन को बढ़ावा देते हैं। इसलिए यह आपके इंसुलिन रेजिस्टेंस से आजादी दिला सकता है। शरीर की इंसुलिन सेंसटिविटी को बनाए रखने के लिए अपने भोजन में हर दिन कम से कम 1 पूरी लहसुन की कली शामिल करने की कोशिश करें।
दरक
अदरक का अर्क आपके शरीर में सेरोटोनिन रिसेप्टर्स के साथ इंटरैक्ट करता है। ये रिसेप्टर्स आपके शरीर में इंसुलिन प्रोडक्शन को अनियमित करने में सक्षम हैं। इसलिए आपका शरीर आपके ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने के लिए ज्यादा इंसुलिन सेंसटिव हो जाता है।
सेब का सिरका
सेब के सिरके का मुख्य इंग्रिडेंट सिरका(विनेगर) है। यह ब्लड शुगर लेवल को कम करने में मदद करता है और इंसुलिन के प्रभाव को बढ़ाता है। यह पेट से आंतों तक भोजन रिलीज करने में देरी करता है। जिससे शरीर को ब्लड फ्लो में ग्लूकोज को एब्जॉर्ब करने के लिए ज्यादा समय मिलता है और इंसुलिन सेंसटिविटी में सुधार होता है।
दालचीनी
यह एक मसाला है जो इंसुलिन सेंसटिविटी में सुधार करने में मदद करता है। यह शरीर की कोशिकाओं तक ग्लूकोज के ट्रांसपोर्टेशन में मदद करता है। यह इंसुलिन रेजिस्टेंस को रोकने के लिए आपके ब्लड फ्लो में शुगर की मात्रा को बढ़ाता है।
हल्दी
यह एक ऐसा मसाला है जिसमें करक्यूमिन मिलता है जो इंसुलिन रेजिस्टेंस और टाइप -2 डायबिटीज के इलाज में मदद करता है। यह डायबिटीज और वजन बढ़ने से जुड़ी और भी समस्याओं का इलाज करता है।
इंसुलिन रेजिस्टेंस के लिए इलाज
डायबिटीज के लिए दो दवाएं कॉमन हैं जो इंसुलिन रेजिस्टेंस के इलाज में सहायक हैं। टैब मेटफॉर्मिन 500एमजी इंसुलिन रेजिस्टेंस में सुधार करने वाली दवाओं में से एक है। यह ग्लूकोज के प्रोडक्शन को कम करती है और इंसुलिन सेंसटिविटी को बढ़ाती है। पियोग्लिटाज़ोन एक और दवा है जो इसे छुटकारा दिलाने में मदद करती है। ये दवाएं न केवल इंसुलिन रेजिस्टेंस से आजादी दिलाती हैं बल्कि टाइप-2 डायबिटीज में भी काफी फायदेमंद हैं। आपको इन दवाओं को अपने डॉक्टर से सलाह के बाद ही लेना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
इंसुलिन रेजिस्टेंस के टेस्ट(परीक्षण)में विभिन्न प्रकार के ब्लड टेस्ट शामिल होते हैं जैसे उपवास(फास्टिंग), रैंडम ग्लूकोज और एचबीए1सी टेस्ट। और दूसरे टेस्ट में ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (ओजीटीटी) और होमोस्टैसिस मॉडल असेसमेंट (एचओएमए-आईआर) का इस्तेमाल इंसुलिन रेजिस्टेंस का आकलन करने के लिए भी किया जा सकता है।
विभिन्न मामलों में बिगड़ा हुआ इंसुलिन फंक्शन पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) से करीब से जुड़ा हुआ है। इन हार्मोनल परेशानी के लिए विशेष मैनेजमेंट की जरूरत हो सकती है।
हां, इंसुलिन रेजिस्टेंस से छुटकारा पाया जा सकता है। आप एक हेल्दी लाइफस्टाइल अपना सकते हैं, रेगुलर रूप से एक्सरसाइज कर सकते हैं, अपना वजन कंट्रोल रख सकते हैं। हाई-कैलोरी और कार्बोहाइड्रेट वाले खाने से बचें। और सबसे जरूरी बात की जैसे ही आपको डायबिटीज का पता चलता है तो तुरंत ही इसका उपचार शुरू करें।
खराब इंसुलिन फ़ंक्शन के कारण अधिक वजन, आनुवांशिकी, शारीरिक रूप से सक्रिय न होना, अनहेल्दी डाइट, हार्मोनल परेशानी और कुछ मेडिकल कंडीशन हैं। इन फैक्टर्स का दिखना मतलब इन्सुलिन रेजिस्टेंस।
आप ब्लड टेस्ट के माध्यम से जांच सकते हैं कि आपका शरीर इंसुलिन के प्रति अच्छी प्रतिक्रिया दे रहा है या नहीं। जो उपवास(फास्टिंग) इंसुलिन लेवल, ग्लूकोज लेवल और एचबीए 1 सी लेवल को मापता है। ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (ओजीटीटी) और होमोस्टैसिस मॉडल असेसमेंट (एचओएमए-आईआर) का भी उपयोग किया जा सकता है।
मोटापा, आनुवंशिकी, खराब लाइफस्टाइल और अनहेल्दी डाइट जैसे कारकों के कारण इंसुलिन की समस्याएं हो सकती हैं। यह ब्लड शुगर को प्रभावी ढंग से कंट्रोल करने की शरीर की क्षमता को बाधित करता है।
आप वजन कम करके, रेगुलर एक्सरसाइज करके, बैलेंस डाइट और तनाव मैनेजमेंट जैसे बदलाव करके बिगड़े हुए इंसुलिन को कंट्रोल कर सकते हैं। इसके लिए आप हेल्थ सर्विस प्रोवाइडर की भी मदद ले सकते हैं।
इंसुलिन रेजिस्टेंस एक ऐसी स्थिति है जहां आपके शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया नहीं करती हैं। जिस कारण ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है। इससे टाइप 2 डायबिटीज और दूसरी हेल्थ प्रॉब्लम हो सकती हैं।
इंसुलिन में सुधार के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाना जरूरी है। इसमें बैलेंस डाइट बनाए रखना, रेगुलर फिजिकल एक्टिविटी में शामिल होना, तनाव मैनेज करना और, कुछ मामलों में, हेल्थ एक्सपर्ट की सलाह के अनुसार दवाएं लेना शामिल है।
प्री-डायबिटीज वाले व्यक्ति का ब्लड शुगर लेवल सामान्य लेवल से थोड़ा ज्यादा होता है। इसलिए व्यक्ति का अग्न्याशय(पैंक्रियाज) ब्लड शुगर लेवल को कम करने के लिए जरूरी इंसुलिन जारी करने के लिए अधिक मेहनत करता है। यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है तो अग्न्याशय की इंसुलिन जारी करने की क्षमता कम हो जाती है। इससे टाइप-2 डायबिटीज का विकास होता है।
ऐसे कई सप्लीमेंट हैं जो इंसुलिन की क्रिया को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। ऐसे कई अध्ययन हुए हैं जो साबित करते हैं कि क्रोमियम, बर्बेरिन, मैग्नीशियम और रेस्वेराट्रोल प्रभावी सप्लीमेंट हैं। वे ब्लड शुगर लेवल को कम करने और इंसुलिन सेंसटिविटी को बढ़ाने के लिए इंसुलिन रिसेप्टर्स की क्षमता में सुधार करते हैं। ये सप्लीमेंट प्राकृतिक रूप(नैचुरल तरीके) से पौधों और पौधों से बने प्रोडक्ट में पाए जाते हैं। फिर भी आपको इन सप्लीमेंट्स को कम मात्रा में लेने की जरूरत है।
एक बार जब आप हेल्दी फैट और लो-कार्बोहाइड्रेट वाला डाइट लेना शुरू कर देते हैं और अपनी लाइफस्टाइल में बदलाव करते हैं, तो इंसुलिन रेजिस्टेंस से छुटकारा पाने में कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक का समय लग सकता है। शुरुआत में 36 घंटे से 3 दिन तक का लंबा उपवास(फास्ट) इंसुलिन रेजिस्टेंस से छुटकारा पैनल में मदद करता है।
बिगड़े हुए इंसुलिन फंक्शन को रोकना संभव नहीं है क्योंकि अधिकांश लोग इसे समझ ही नहीं पाते हैं। आप उन रिस्क फैक्टर्स को एडजस्ट कर सकते हैं जो इंसुलिन क्रिया को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार हैं। आप एक हेल्दी लाइफस्टाइल अपना सकते हैं, नियमित रूप से एक्सरसाइज कर सकते हैं। डायबिटीज अनुवांशिक(जेनेटिक) भी होता है। यदि आपके परिवार में किसी को डायबिटीज रहा है तो आपको प्री-डायबिटीज और टाइप-2 डायबिटीज के विकास को रोकने के लिए अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है।
बहुत से लोगों को शरीर में इंसुलिन से जुड़ी समस्याओं का कई वर्षों तक पता नहीं चलता। यदि आपमें कोई लक्षण दिखता है, तो आपको अपने डॉक्टर को दिखाने की ज़रूरत है। कुछ इंसुलिन रेजिस्टेंस लक्षणों में हाई-ब्लड प्रेशर, उपवास(फास्टिंग) ग्लूकोज लेवल, ट्राइग्लिसराइड लेवल और एचडीएल कोलेस्ट्रॉल(बैड) लेवल शामिल हैं। जब कुछ पीड़ितों का इंसुलिन कार्य प्रभावित होता है तो उनमें स्किन टैग और पैची स्किन भी विकसित हो जाती है।
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