टाइप 2 शुगर वाले लोग ठीक से इंसुलिन का उपयोग नहीं कर पाते हैं क्योंकि या तो उनके पैंक्रियाज (अग्न्याशय) ने जरूरी इंसुलिन का उत्पादन बंद कर दिया है या कोशिकाएं इंसुलिन का सही से उपयोग नहीं कर सकती हैं।
तब उन्हें इंसुलिन थेरेपी या इंसुलिन इंजेक्शन लेने की सलाह दी जाती है।
इंसुलिन का महत्व
इंसुलिन को लिक्विड के रूप में इंसुलिन इंजेक्शन के द्वारा मनुष्य के शरीर में सामान्य इंसुलिन की जगह इंजेक्ट किया जाता है। यह ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मदद करता है। इंसुलिन को शरीर के विभिन्न हिस्सों में स्किन के नीचे इंजेक्ट किया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के जरूरत के हिसाब से इंसुलिन इंजेक्ट करने की मात्रा अलग-अलग हो सकती है। शुगर लेवल को कंट्रोल में रखने के लिए एक से अधिक इंसुलिन का भी उपयोग किया जाता है। आपके डॉक्टर आपकी शारीरिक जरूरतों के अनुसार इंसुलिन की मात्रा और ब्रांड का सुझाव देते हैं। शुगर एक मेटाबॉलिज्म से जुड़ी समस्या है जिसमें कोशिकाएं इंसुलिन का ठीक से उपयोग नहीं कर पाती हैं और इंसुलिन रेजिस्टेंट हो जाती हैं जिस कारण शरीर में शुगर लेवल बढ़ जाता है और अगर इसका ध्यान न दिया जाए तो कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। शुगर को पूरी तरह से खत्म करना मुश्किल हो सकता है लेकिन ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल में रखा जा सकता है। अच्छे डाइट, एक्सरसाइज और दवाओं के माध्यम से शुगर लेवल को कंट्रोल में रखा जा सकता है। लेकिन जब ये चीजें भी ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल में रखने में मदद नहीं कर पाती हैं तो डॉक्टर इंसुलिन थेरेपी या इंसुलिन इंजेक्शन शुरू करने की सलाह देते हैं।
शुगर के मरीजों को इन समस्याओं का समाना करना पड़ सकता है- हार्ट डिजीज, किडनी की समस्या, नर्व सिस्टम की समस्या, आंखों की समस्या, स्ट्रोक।
शुगर की ऐसी समस्याएं जिन्हें इंसुलिन इंजेक्शन से रोका जा सकता है:
- दिल का दौरा और स्ट्रोक
- किडनी से जुड़ी समस्याएं
- नर्व सिस्टम की समस्या
- आंखों की समस्या
- पैरों की समस्या
- मसूड़ों या मुँह के रोग
- डायबिटीज़ संबंधी कीटोएसिडोसिस
- लो-ब्लड शुगर लेवल
- हाई-ब्लड शुगर लेवल
- कैंसर
यदि शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है तो लाइफस्टाइल को अच्छा बनाता है और जीवन काल को कई गुना तक बढ़ा देता है। इंसुलिन थेरेपी उन शुगर के मरीजों के लिए अच्छा साबित हो सकता है जो हर दिन अपने हाई ग्लूकोज लेवल को कंट्रोल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
इंसुलिन इंजेक्शन क्या है?
मानव इंसुलिन दो रूपों में उपलब्ध है, लिक्विड और सस्पेंशन। इनका उपयोग स्किन के नीचे किया जाता है, डॉक्टर की सलाह से इनका उपयोग हर दिन एक से अधिक बार किया जा सकता है।
इंसुलिन इंजेक्शन शीशी, इंसुलिन पंप और कार्टिज रूप में उपलब्ध हैं, इनका उपयोग एक दूसरे से अलग होता है। शीशी का उपयोग इंजेक्शन या सीरिंज के साथ किया जाता है, इंसुलिन पंप एक डिवाइस के साथ आता है जिसका उपयोग बताए गए तरीकों से किया जाता है और कार्ट्रिज का उपयोग आपके डॉक्टर द्वारा बताए गए इंसुलिन पेन से किया जाता है।
इस इंसुलिन का उपयोग इंट्रावेनस के रूप में किया जाता है। इसे केवल हेल्थ सर्विस प्रोवाइडर द्वारा लेने की सलाह दी जा सकती है और इसके साइड इफेक्ट पर नजर रखने के लिए मॉनिटरिंग की जरूरत होती है।
जैसा कि ऊपर बताया गया है इंसुलिन विभिन्न रूपों में आता है। पारंपरिक तरीका शीशी या सीरिंज है, इसके साथ-साथ कार्ट्रिज या इंसुलिन पेन और डिस्पोजेबल डोजिंग डिवाइस या इंसुलिन पंप शरीर में इंसुलिन इंजेक्ट करने के लिए उपयोग की जाने वाली दो प्रमुख विधियां हैं। इनमें से कौन सा उपयोग करना है यह आपके डॉक्टर आपकी जरूरत के हिसाब से आपको सलाह देंगे।
इंसुलिन इंजेक्शन लगाने का तरीका:
शुगर के मरीजों को हाई-शुगर लेवल को कंट्रोल में रखने के लिए इंसुलिन इंजेक्शन लेने की जरूरत हो सकती है। इन इंसुलिनों को लिक्विड या सस्पेंशन के रूप में बाहर से इंजेक्ट किया जाता है। इंसुलिन का इंजेक्शन कहा लगता है, इन्सुलिन इंजेक्शन कितने डिग्री पर लगता है, इन्सुलिन इंजेक्शन का जीवनकाल कितना होता है, इंसुलिन इंजेक्शन लगाने का तरीका, इन सब बातों की पूरी और सही जानकारी होना बहुत जरूरी है।
इंसुलिन इंजेक्शन लगाने का तरीका इस प्रकार है:
सीरिंज या शीशी:
यह सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला एक पॉकेट फ्रेंडली तरीका है। इसका उपयोग त्वचा के नीचे और मांसपेशियों की फैट वाली परत के बीच किया जाता है। इसे इंजेक्ट करते समय सावधान रहें क्योंकि गहरा इंजेक्ट करने से दर्द हो सकता है और लो-ब्लड शुगर की समस्या हो सकती है। जब आप इसे मांसपेशियों में गहराई से इंजेक्ट करते हैं तो यह ब्लड में ज्यादा तेज़ी से घुल जाता है और तेजी से शुगर लेवल को कम कर सकता है। ये सीरिंज अलग-अलग आकार में आती हैं और उनकी सुई की धार एक-दूसरे से अलग होती है।
इन सिरिंज को स्किन के कुछ विशेष हिस्सों पर ही उपयोग करने की सलाह दी जाती है इन्हें एक ही स्थान पर उपयोग करने से समस्याएं हो सकती हैं। एक ही जगह पर बार-बार इंजेक्ट करने से एक ही जगह पर फैट जमा हो सकती है और इंसुलिन के प्रभाव को कम कर सकती है, इस स्थिति को लिपोडिस्ट्रोफी कहा जाता है।
इन सिरिंजों का उपयोग शरीर के अलग-अलग हिस्सों पेट, जांघों और बांहों पर लिपोडिस्ट्रोफी को रोकने के लिए किया जाता है और दर्द भी कम होता है।
इंसुलिन पेन
शुगर के मरीजों को इंसुलिन इंजेक्शन लगाने का तरीका है इंसुलिन पेन। एक्यूरेसी और आसान होने के कारण इंसुलिन पेन शुगर के मरीजों के बीच ज्यादा लोकप्रिय है।
इनका उपयोग सीरिंज या शीशी की तुलना में ज्यादा आसान होता है, इसकी लोकप्रियता के प्रमुख कारण हैं:
- उपयोग करने में बहुत सुविधाजनक
- एक्यूरेसी
- सीरिंज से कम दर्द
- पोर्टेबल
- इंसुलिन का लेवल पहले से निर्धारित कर सकते हैं
- कम समय का इस्तेमाल
- उपयोग और स्टोरेज दोनों में आसान
इस पेन की डोज (खुराक) पहले से ही सेट होता है जो लोगों को सही मात्रा में खुराक लेने में मदद करता है। सीरिंज में 20% से कम लोग एक्यूरेसी महसूस करते हैं। इंसुलिन पेन दो प्रकार के होते हैं:
डिस्पोजेबल इंसुलिन पेन
ये पेन इंसुलिन से भरे कार्ट्रिज के साथ आते हैं और उपयोग के बाद आसानी से इनको डिस्पोज किया जा सकता है।
दोबारा इस्तेमाल होने वाला इंसुलिन पेन
दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाले इंसुलिन पेन में फिर से नए कार्ट्रिज को डाल कर इस्तेमाल किया जा सकता है।
इंसुलिन पेन खरीदने से पहले जरूरी सलाह
- दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाले पेन के लिए डॉक्टर द्वारा बताए गए इंसुलिन ब्रांड की ड्यूरिबिलिटी (स्थायित्व) और क्वालिटी (गुणवत्ता) को ध्यान में रखें।
- इंसुलिन खुराक के लिए पेन के आकार का ध्यान रखें।
- ऐसी इंसुलिन पेन खरीदें जिसका उपयोग आप खुराक बढ़ने पर भी कर सकते हैं।
- यदि खुराक सही ढंग से नहीं दी जाती है तो साइज करेक्शन हो सके।
डिस्पोजेबल डोजिंग डिवाइस या इंसुलिन पंप
ये छोटा कंप्यूटराइज्ड डिवाइस है इसमें इंसुलिन की खुराक पहले से निर्धारित होती है। आप इसे अपने कपड़ों के नीचे लगा सकते हैं। इसमें एक चिपकने वाला पैच होता है जिसकी मदद से इसे आपके पेट या बांह से जोड़ा जा सकता है।
जिन लोगों में भोजन धीमी गति से एब्जॉर्ब होता है, जो प्रेगनेंसी प्लान कर रहे हैं या ऐसे बच्चे और लोग जो अपने इंसुलिन इंजेक्शन का रिकॉर्ड नहीं रख सकते हैं वे इन पंप का इस्तेमाल कर सकते हैं।
इसमें दर्द नही होता है और इसे इस्तेमाल करना बहुत ही आसान होता है। यह आसान इसलिए लगता है क्योंकि शरीर अपनी पूर्व निर्धारित खुराक के अनुसार इंसुलिन को एब्जॉर्ब करता रहता है। सुबह-सुबह हाई-ब्लड शुगर जिसे डॉन फेनोमेनन भी कहते हैं के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
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इंसुलिन इंजेक्शन कहां लगाया जाता है?
- पेट
- जांघ (थाई)
- हाथ
ऊपर बताई गई जगह पर ज्यादा फैट और मांसपेशियाँ होती हैं इसलिए इन्हें इंसुलिन इंजेक्शन का उपयोग करने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।
- पेट में पसलियों के नीचे से कहीं भी इंसुलिन इंजेक्शन का उपयोग किया जा सकता है। यह सबसे प्रभावी क्षेत्र माना जाता है जो इंसुलिन को अच्छी तरह से एब्जॉर्ब करता है और शुगर लेवल को सही बनाए रखने में मदद करता है।
- जांघ में इसका उपयोग आपके घुटने और पैर के ऊपरी भाग के बीच बाहरी जांघ पर किया जाता है।
- कोई आपकी बांह में कंधे के नीचे और कोहनी के ऊपर भी इंसुलिन इंजेक्ट कर सकता है बस इस बात का ध्यान रखा जाए कि इसका उपयोग बांह के उस भाग पर करें जहां चर्बी ज्यादा हो।
ये इंसुलिन इंजेक्शन के लिए सबसे सुरक्षित और प्रभावी क्षेत्र माने जाते हैं इनमें से पेट पर लगाने से सबसे तेजी से असर होता है,उसके बाद जांघ और बांह आती हैं। पीठ का निचला हिस्सा भी इंसुलिन इंजेक्शन के लिए सही माना जाता है।
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इंसुलिन का इंजेक्शन कहाँ नहीं लगाना चाहिए?
इंसुलिन का इंजेक्शन कहा लगता है इस बात की पूरी जानकारी के बाद यह जानकारी होना भी जरूरी है की इंसुलिन का इंजेक्शन कहा नहीं लगना चाहिए। इंसुलिन एब्जॉर्ब होने की गति एक स्थान से दूसरे स्थान पर अलग-अलग हो सकती है, इसलिए इंजेक्ट करने के लिए सबसे सही जगह चुनना बहुत जरूरी है। इंसुलिन एब्जॉर्ब होने की सबसे अच्छी जगह पेट को माना गया है।
इंजेक्शन वाली जगह को बार-बार न बदलें बल्कि इंजेक्शन लगने वाली एक्यूरेट जगह से थोड़ा इधर-उधर इंजेक्शन लगाएं। इंजेक्ट करते समय नाभि के चारों ओर क्लॉकवाइज डायरेक्शन में जगह को बदलते रहें। इंजेक्शन लगने वाली दो जगह के बीच कम से कम 2 इंच का गैप रखें।
एक ही जगह पर इंजेक्शन लगाते रहने से लिपोहाइपरट्रॉफी की समस्या हो सकती है जिसमे इंजेक्ट की गई जगह पर त्वचा के नीचे गांठ बन सकती है। इस जगह पर बार-बार इंजेक्शन लगाने से इंसुलिन एब्जॉर्ब होने में परेशानी हो सकती है। इससे इंसुलिन एब्जॉर्ब होना धीमा हो जाता है जिससे शुगर लेवल को ठीक से मैनेज करने में समस्या हो सकती है।
इन बातों का ध्यान रखते हुए कोई भी पेट, बांह और जांघ पर इंसुलिन इंजेक्शन का उपयोग कर सकता है:
- तिल (मोल)
- स्ट्रेच के निशान
- निशान (स्कार्स)
- वैरिकाज – वेंस
- किसी तरह के दाग का निशान
- जोड़ों के पास
- नसों और ब्लड वेंस से बचने के लिए इसका उपयोग आंतरिक जांघों (इनर थाई) या जोड़ों के पास न करें।
- इंसुलिन को मांसपेशियों में इंजेक्ट न करें, इंसुलिन को मांसपेशियों में इंजेक्ट किया जाए तो यह हानिकारक नहीं हो सकता है, यह ज्यादा तेज़ी से एब्जॉर्ब हो जाएगा। इससे शुगर लेवल में अचानक गिरावट आ सकती है।
ऊपर बताई गई जगह पर इंसुलिन इंजेक्शन का उपयोग ब्लड शुगर कंट्रोल में सहायक और प्रभावी नहीं होगा। सावधानीपूर्वक इस्तेमाल के लिए अपने डॉक्टर से सलाह लें।
इंसुलिन का इंजेक्शन कैसे लगाएं?
इन्सुलिन इंजेक्शन कितने डिग्री पर लगता है और इंसुलिन इंजेक्शन लगाने का तरीका क्या होता है इस बात की जानकारी होना बहुत ही ज्यादा जरूरी है। आप जिस डिवाइस का उपयोग कर रहे हैं उसके आधार पर तरीके अलग-अलग हो सकते हैं।
इंसुलिन सीरिंज का उपयोग कैसे करें?
- हर बार नई सिरिंज का प्रयोग करें।
- इसके प्लंजर को नीचे खींचें और इसमें इंसुलिन की जरूरी खुराक डालें।
- यदि कोई बबल बन जाए तो सिरिंज को दबाएं।
- अब उस जगह को अल्कोहल पैड से साफ करें जहां इंजेक्ट करना है।
- अब उस जगह को थोड़ा सा दबा कर ऊपर की तरफ खींचे और सुई इंजेक्ट करें।
- सिरिंज को 90 डिग्री पर पकड़ें और प्लंजर को दबाएं।
- अब सुई को बाहर निकालें।
- त्वचा (स्किन) पर रगड़ें बिलकुल भी नहीं।
- इस्तेमाल की गई सुई को डिस्पोज करने के लिए सही कंटेनर का इस्तेमाल करें।
इंसुलिन पेन का उपयोग कैसे करें?
- नए पेन का इस्तेमाल करते समय उसे 30 मिनट पहले फ्रिज से बाहर निकाल लें।
- अब इंसुलिन पेन को अपनी हथेलियों के बीच तब तक रगड़ें जब तक वह साफ न दिखने लगे।
- पेन का ढक्कन खोलें और उसे अल्कोहल पैड से साफ करें।
- नई सुई लगाएं।
- इंसुलिन की जरूरी मात्रा लें।
- इंजेक्शन बटन दबाएं और इसे 5 से 10 सेकंड के लिए उसी जगह पर रखें।
- अब सुई को बाहर निकाल लें।
- त्वचा को रगड़ें नहीं।
- सुई को अच्छी जगह डिस्पोज करें।
- दोबारा इस्तेमाल करने के लिए इंसुलिन पेन पर ढक्कन लगाएं।
इंसुलिन पंप का उपयोग कैसे करें?
- इन्फ्यूजन सेट का उपयोग करके इसे अपने शरीर से अटैच करें।
- पेट, जांघ या कूल्हों की त्वचा के नीचे एक सुई डालें।
- इसमें उपयोग करने के लिए एक चिपकने वाला पैच दिया जाता है।
- कुछ दिनों के लिए खुराक(डोज) को पहले से प्रोग्राम किया जाता है।
- यह जरूरत के हिसाब से शरीर में थोड़ी मात्रा में इंसुलिन पहुंचाता है।
- इस डिवाइस का उपयोग करने से पहले किसी हेल्थ केयर एक्सपर्ट से इसको उपयोग करने की जानकारी लेनी पड़ सकती है।
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इंसुलिन इंजेक्शन के साइड इफेक्ट क्या हैं?
आपके डॉक्टर आपकी कंडीशन और आपके शुगर लेवल के आधार पर आपको इंसुलिन लेने की सलाह देते हैं, लेकिन इसके कुछ खुराक साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं।
- इंजेक्शन वाली जगह पर खुजली, सूजन हो सकती है।
- फैट का ब्रेकडाउन होना और एक्स्ट्रा फैट जमा हो जाना जैसी समस्या हो सकती है।
- डाईजेशन से जुड़ी समस्याएं।
- ज्यादा वजन (ओवरवेट)।
इन सबके अलावा कुछ और भी समस्या हो सकती है जिसमे आपको तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी पड़ सकती है जैसे,
- चक्कर आना
- हार्टबीट की समस्या
- सांस लेने में तकलीफ
- ज्यादा पसीना आना
- पूरे शरीर में खुजली होना
- शरीर पर चकत्ते पड़ना
- मांसपेशियों में ऐंठन(क्रैंप)
- कमजोरी
- सूजन
- अचानक वजन बढ़ना
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सुइयों, सीरिंज और लैंसेट को डिस्पोज (निपटान) कैसे करें?
इन्सुलिन इंजेक्शन कितने डिग्री पर लगता है और इन्सुलिन इंजेक्शन का जीवनकाल कितना होता है, इन सब जानकारी के बाद जो सबसे ज्यादा समझने की जरूरत होती है वो है इनको डिस्पोज करने का सही तरीका। सुई, सिरिंज और लैंसेट का उपयोग करने के बाद उनको सही तरीके से डिस्पोज करना जरूरी है। ऐसे किसी भी खुले जगह पर फेंक देना दूसरों के लिए खतरनाक हो सकता है।
इनको डिस्पोज करने के लिए सबसे पहले किसी भी सुई, सिरिंज और लैंसेट का उपयोग करने के बाद उन सभी को तुरंत एक कंटेनर में डाल दें। इन कंटेनर को बच्चों और पालतू जानवरों की पहुंच से दूर रखें, जब कंटेनर लगभग 75% भर जाए तो इन सिरिंज को सही गाइडेंस के हिसाब से अलग-अलग तरीकों से डिस्पोज करें।
इनको डिस्पोज करने के लिए अस्पताल या फार्मेसी जैसी जगहों का उपयोग करें।
इसके लिए यदि आपके क्षेत्र में कोई स्पेशल वेस्ट मैनेजमेंट सुविधा उपलब्ध है जहाँ मेडिकल वेस्ट को डिस्पोज किया जा सकता है तो इसका उपयोग करें।
अपने फार्मासिस्ट से अपने क्षेत्र में उपलब्ध मेडिकल टेक-बैक प्रोग्राम के बारे में जानकारी लें।
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इंसुलिन लेने वालों के लिए डाइट से जुड़ी सलाह
इंसुलिन की खुराक आपके ब्लड शुगर लेवल और आपके द्वारा खाए जाने वाले भोजन पर आधारित होती हैं। आपके डाइट एक्सपर्ट या डॉक्टर इंसुलिन के साथ आपके शुगर लेवल को बनाए रखने के लिए आपका डाइट प्लान बनाते हैं इसलिए अपने डाइट में किसी तरह का बदलाव न करें।
शुगर लेवल को कंट्रोल में रखने के लिए फिजिकल एक्टिविटी और एक्सरसाइज करते रहें।
इंसुलिन लेने वालों के लिए ध्यान देने योग्य बातें
- हमेशा शुगर पहचान ब्रेसलेट पहनें रखें जिससे की किसी आपातकालीन स्थिति में दूसरों को आपकी मेडिकल कंडीशन का पता चल सके।
- अपनी दवा और इंसुलिन के बारे में सारी जानकारी और दवा के पर्चे साथ में रखें।
- आप अपने डाइट में जो भी सप्लीमेंट, विटामिन या खनिज लेते हैं उनकी लिस्ट अपने पास रखें।
- अपने एचबीए1सी और ब्लड शुगर लेवल की नियमित जांच कराते रहें।
कुछ अन्य उपयोगी सुझाव
- यदि आपको किसी दवा या इंसुलिन से एलर्जी है, तो तुरंत अपने डॉक्टर और फार्मासिस्ट को बताएं।
- आपको कितनी बार अपना ब्लड शुगर जांचना चाहिए अपने डॉक्टर से इसकी सलाह लें।
- यदि आपको लो-ब्लड शुगर की समस्या है तो मशीनरी चलाने या गाड़ी चलाने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह लें कि क्या आपको अपने ब्लड शुगर की जांच करने की ज़रूरत है।
- अगर आप अपने दांतों का किसी प्रकार का इलाज करा रहें हैं तो अपने सर्जन या डेंटिस्ट को इस बात की जानकारी जरूर दें की आप इंसुलिन का उपयोग कर रहे हैं।
- यदि आप गर्भवती(प्रेगनेंट) हैं, या प्रेगनेंसी का सोच रही हैं या बच्चे को दूध पिला रही हैं और इंसुलिन का उपयोग कर रही हैं तो अपने डॉक्टर को सूचित करें।
- शराब के कारण ब्लड शुगर का लेवल गिर सकता है तो अपने डॉक्टर से इसकी जानकारी लें की क्या इंसुलिन लेते समय शराब पीना सुरक्षित है।
निष्कर्ष
शुगर एक लम्बी प्रक्रिया है और इससे बचने का एकमात्र तरीका है अपने ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल में रखना। कुछ शुगर के मरीज लाइफस्टाइल में बदलाव और शुगर की दवाओं से इसे मैनेज कर सकते हैं लेकिन कुछ कंडीशन में केवल इंसुलिन इंजेक्शन ही एकमात्र तरीका बचता है।
ये इंसुलिन इंजेक्शन हाई ग्लूकोज लेवल को कंट्रोल करने में फायदेमंद है। डॉक्टर अलग-अलग व्यक्तियों की जरूरतों के हिसाब से इंसुलिन की खुराक और इंजेक्शन के ब्रांड का सुझाव देते हैं।
अपने डॉक्टर या हेल्थ केयर एक्सपर्ट की गाइडेंस के हिसाब से ही इसका इस्तेमाल करें। सावधानी और अनुशासन का ध्यान रखते हुए इंसुलिन इंजेक्शन का उपयोग करने के बाद भी आसानी से हेल्दी लाइफ जी सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
एक बार उपयोग के बाद सिरिंज का दोबारा उपयोग न करना ही सबसे अच्छा है। किसी भी तरह के इंफेक्शन से बचने के लिए नई सीरिंज का उपयोग करना ही बेहतर है। इंसुलिन पेन में हाइजीन का ध्यान रखते हुए इनका उपयोग 5 बार तक किया जा सकता है।
दर्द को कम करने के लिए सही तरीके का ध्यान रखें, हमेशा नई सुई का उपयोग करें, सफाई का ध्यान रखें, अपनी सिरिंज या सुई को कमरे के तापमान(रूम टेंपरेचर) पर रखें, इंजेक्शन से बुलबुले(बबल) हटा दें और इंजेक्शन वाली जगह को साफ करने के लिए स्पिरिट का उपयोग करें। दर्द को कम करने के लिए इंजेक्शन लगाने वाली जगह पर इंजेक्शन लगाने से पहले बर्फ का इस्तेमाल करें, इंजेक्शन का उपयोग करने से पहले स्पिरिट को पूरी तरह सूखने दें।
बार-बार एक ही जगह पर इंसुलिन इंजेक्शन का इस्तेमाल करने से लिपोहाइपरट्रॉफी हो जाती है, इसमें त्वचा के नीचे फैटी टिश्यू की एक गांठ बन जाती है और इंसुलिन एब्जॉर्ब करने में दिक्कत होती है, इसलिए इंसुलिन इंजेक्शन लगाने की जगह को नियमित रूप से बदलने की सलाह दी जाती है।
हाँ, पेट इंसुलिन इंजेक्शन के लिए सबसे अच्छी जगह है क्योंकि यह इंसुलिन को जल्दी एब्जॉर्ब करता है। तो आप अपने नाभि के ऊपर इंसुलिन इंजेक्ट कर सकते हैं। नाभि पर या नाभि के ठीक नीचे इंजेक्शन का प्रयोग न करें क्योंकि यहां इंसुलिन को एब्जॉर्ब करने में परेशानी हो सकती है।
आप अपने जांघ के बाहरी हिस्से में पैर के जोड़ के नीचे और घुटने के ऊपर इंसुलिन इंजेक्शन का प्रयोग कर सकते हैं। नसों और ब्लड वेसल्स से बचने के लिए इसका उपयोग आंतरिक जांघों(इनर थाई) या जोड़ों के पास न करें।
इंसुलिन सही से एब्जॉर्ब हो इसलिए इसे स्किन के फैट वाले भाग में इंजेक्ट किया जाता है तो इस बात का ध्यान रखें कि मांसपेशी में इंजेक्ट न करें। इन्सुलिन इंजेक्शन लगाने से पहले इस बात का विशेष ध्यान रखें की इन्सुलिन इंजेक्शन कितने डिग्री पर लगता है, इंसुलिन का इंजेक्शन लगाने से पहले लगाने वाली जगह पर त्वचा के एक इंच हिस्से को चुटकी से दबाएं और फिर एक बार में 90 डिग्री के कोण पर इंसुलिन पेन इंजेक्ट करें।
इंसुलिन पेट में सबसे तेजी से एब्जॉर्ब होता है इसलिए बेहतर परिणाम के लिए इसे पेट वाली जगह पर इंजेक्ट करने की सलाह दी जाती है लेकिन बार-बार इंजेक्शन की जगह बदलने की जरूरत होती है इसलिए इंसुलिन को बांहों, जांघों और कूल्हे पर भी लगाया जाता है।
आपके भोजन से पहले इंसुलिन दिया जाता है जिसमें कार्बोहाइड्रेट शामिल होता है, इंसुलिन की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है की भोजन से पहले आपका शुगर लेवल कितना है और आप कितना कार्ब्स लेते हैं। बेसल इंसुलिन (लगभग 120 ग्लूकोज लेवल के आसपास) में आपको डॉक्टर द्वारा बताई गई इंसुलिन की मात्रा लेने की सलाह दी जाती है जो लगभग 1 यूनिट हो सकती है। बोलस इंसुलिन (जब आप कार्बोहाइड्रेट खाते हैं) में आप अपने बेसल इंसुलिन के अलावा प्रत्येक 10 ग्राम कार्बोहाइड्रेट के लिए 1 अतिरिक्त यूनिट लेते हैं। यह मात्रा अलग-अलग व्यक्तियों में उनकी इंसुलिन सेंसटिविटी के आधार पर अलग-अलग हो सकती है इसलिए सही सुझाव के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
इंसुलिन इंजेक्शन पांच तरह की होती हैं और सबका जीवनकाल अलग-अलग होता है जैसे,
– रैपिड एक्टिंग इंसुलिन 15 मिनट के बाद असर दिखाता है और इसका असर लगभग 3 से 5 घंटे तक रहता है।
– शॉर्ट एक्टिंग इंसुलिन का असर 30 से 60 मिनट के भीतर देखा जाता है और इसका असर 5 से 8 घंटे तक रहता है।
– इंटरमीडिएट एक्टिंग इंसुलिन का असर 1 से 3 घंटे में देखा जाता है और इसका असर 12 से 16 घंटे तक रहता है।
– लॉन्ग एक्टिंग इंसुलिन का असर 1 घंटे में देखा जाता है और इसका असर 20 से 26 घंटे तक रहता है।
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