इंसुलिन की डोज को स्लाइडिंग स्केल चार्ट पर रखा जाता है। डॉक्टर मरीज की मदद से यह इंसुलिन चार्ट तैयार करता है। एक चार्ट तैयार किया जाता है कि व्यक्ति का शरीर इंसुलिन, रोज की रूटीन और कार्बोहाइड्रेट की कंजंपशन (खपत) पर कैसे रिएक्ट करता है। इंसुलिन की डोज दो फैक्टर्स के बेसिस पर अलग-अलग होती है-
- खाना खाने से पहले ब्लड शुगर लेवल- यह नोवोलॉग स्लाइडिंग स्केल चार्ट के लेफ्ट साइड में कम से ज्यादा की तरफ। स्केल के नीचे की तरफ इंसुलिन की हाई डोज होती है। किसी व्यक्ति के ब्लड में ग्लूकोज जितना ज्यादा होगा उससे निपटने के लिए उसे उतनी ही ज्यादा इंसुलिन की जरूरत होगी।
- भोजन के समय इंसुलिन की डोज- यह चार्ट की पहली लाइन में आता है। पहली लाइन में सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना और फिर रात का खाना बताया जाता है।
इंसुलिन सेंसटिविटी के कारण इंसुलिन की डोज पूरे दिन बदलती रहती है। शरीर इंसुलिन के लिए किस तरह से रिएक्ट करता है यही इंसुलिन सेंसटिविटी है। जो दिन के बढ़ने के साथ बदल सकता है। दिन के समय भोजन का स्ट्रक्चर भी बदलता रहता है और डॉक्टर इसे ध्यान में रखते हैं।
इंसुलिन की डोज सेट करने के तरीके-
ज्यादातर डायबिटीज पीड़ितों के लिए इंसुलिन इलाज का बेस है। यदि कोई व्यक्ति डायबिटीज से पीड़ित है तो उसका शरीर या तो पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पा रहा या इंसुलिन का सही ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। टाइप 1 डायबिटीज वाले कुछ लोगों और टाइप 2 डायबिटीज वाले कुछ लोगों को हर रोज इंसुलिन के कई इंजेक्शन लेने चाहिए। इंसुलिन ब्लड ग्लूकोज को सामान्य करता है और ग्लूकोज के लेवल को भी बढ़ने से रोकता है। एक व्यक्ति द्वारा ली जाने वाली इंसुलिन की डोज कई तरह के फैक्टर्स पर डिपेंड करती है।
- फिक्स डोज इंसुलिन- इसमें भोजन में इंसुलिन की एक फिक्स डोज ली जाती है। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति सुबह के नाश्ते में छह यूनिट और रात के खाने में आठ यूनिट ले सकता है। यह पीड़ित व्यक्ति के ब्लड ग्लूकोज रीडिंग या उसके द्वारा खाए गए खाने के बेसिस पर बदलती नहीं है। यह उन लोगों के लिए आसान हो सकता है जिन्होंने अभी-अभी इंसुलिन शुरू किया है लेकिन यह भोजन से पहले ब्लड शुगर के लेवल का जिम्मेदार नहीं है। इसके अलावा यह किसी स्पेशल खाने में कार्ब्स की अलग-अलग डोज को ध्यान में नहीं रखता है।
- कार्ब से इंसुलिन अनुपात (रेशियो)- इस स्लाइडिंग स्केल में एक व्यक्ति कार्ब्स की एक स्पेशल अमाउंट (मात्रा) के लिए एक स्पेशल अमाउंट (मात्रा) में इंसुलिन लेता है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति के नाश्ते में कार्ब और इंसुलिन का रेशियो 10:1 है और वह 30 ग्राम कार्ब्स खाता है तो वह भोजन को कवर करने के लिए नाश्ते से पहले तीन यूनिट कार्ब्स ले सकता है।
- स्लाइडिंग-स्केल इंसुलिन थेरेपी (एसएसआई)- इसमें इंसुलिन की डोज खाना खाने से ठीक पहले पीड़ित व्यक्ति के ब्लड शुगर लेवल पर डिपेंड करता है। ब्लड शुगर लेवल जितना ज्यादा होगा वह उतनी ही ज्यादा इंसुलिन का इस्तेमाल कर सकता है। इस थेरेपी का इस्तेमाल ज्यादातर अस्पतालों के साथ-साथ दूसरी हेल्थ केयर फैसिल्टीज में भी किया जा सकता है क्योंकि इसे मैनेज करना अक्सर मेडिकल स्टाफ के लिए सिंपल और आसान होता है।
स्लाइडिंग स्केल थेरेपी क्या है और यह कैसे काम करती है?
ज्यादातर स्लाइडिंग-स्केल इंसुलिन थेरेपी में पीड़ित के ब्लड में ग्लूकोज के लेवल को ग्लूकोमीटर की मदद से लिया जाता है। इसे प्रति दिन लगभग 4 बार (हर पांच से छह घंटे में, भोजन से पहले और सोते समय) लिया जा सकता है। किसी व्यक्ति को भोजन के समय मिलने वाली इंसुलिन उसके ग्लूकोज वैल्यू पर डिपेंड करती है। कई मामलों में तेजी से काम करने वाले इंसुलिन का इस्तेमाल किया जा सकता है।
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स्लाइडिंग स्केल इंसुलिन चार्ट पढ़ना
ब्लड शुगर के बेस पर इंसुलिन डोज को काउंट कैसे करें? स्लाइडिंग स्केल के साथ इंसुलिन की सही डोज जानने के लिए कुछ स्टेप को फॉलो किया जाना चाहिए-
- ब्लड शुगर लेवल टेस्ट किया जाना चाहिए।
- टाइप 2 डायबिटीज इंसुलिन डोज चार्ट के बाएं कॉलम के साथ एक मिलान ब्लड शुगर मान का मिलान किया जाना चाहिए।
- वर्तमान भोजन तक पहुंचने तक उस मूल्य की पंक्ति के साथ क्षैतिज दिशा में स्लाइड करें।
- फिर एक डोज ली जानी चाहिए जो उस संख्या से मेल खाती हो जहां दोनों मान मिलते हैं।
पीड़ित व्यक्ति को भोजन से पहले अपने ब्लड शुगर लेवल का टेस्ट करना चाहिए जो उसके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले इंसुलिन के प्रकार पर डिपेंड करता है। कुछ प्रकार के इंसुलिन तय समय सीमा से ज्यादा समय तक काम करते हैं। यदि कोई व्यक्ति रैपिड-एक्टिंग इंसुलिन का इस्तेमाल करता है तो वह भोजन करने से 15-30 मिनट पहले अपना इंसुलिन ले सकता है। भोजन के समय तेजी से काम करने वाली इन डोज के अलावा, पीड़ित व्यक्ति दिन में लॉन्ग-एक्टिंग इंसुलिन की डोज बार-बार लेते हैं।
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स्लाइडिंग स्केल इंसुलिन के फायदे और नुकसान-
स्लाइडिंग स्केल का मतलब डेली कैलकुलेशन का एक छोटा नंबर है। प्री-डिटरमाइंड प्लान को फॉलो करने से डायबिटीज पीड़ित ज्यादा आराम महसूस कर सकते हैं। दूसरी ओर ये फैक्टर्स इस टाइप के इलाज को काफी मुश्किल भी बनाते हैं।
भोजन का समय
पीड़ित व्यक्ति को हर दिन लगभग एक ही समय पर भोजन करने की जरूरत होती है। यदि वे इसको फॉलो नहीं कर रहे हैं तो उनकी इंसुलिन सेंसटिविटी उन लोगों के साथ नहीं हो सकती है जिनका इस्तेमाल चार्ट किसी स्पेशल खाने के लिए डोज तय करने के लिए करता है।
नॉन-फ्लेसिबल रूटीन
यह विधि सफल होने के लिए एक स्पेशल डाइट और एक्सरसाइज के प्लान की डिमांड करती है।
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कार्ब्स
एक पीड़ित व्यक्ति को हर बार भोजन के साथ उतनी ही कार्बोहाइड्रेट लेना चाहिए जितनी की चार्ट में बताई गई हैं। हर दिन इसमें कोई चेंज नहीं होना चाहिए
एक्सरसाइज
पीड़ित व्यक्तियों को रोज अपने एक्सरसाइज में बदलाव नहीं करना चाहिए। स्ट्रेस और फिजिकल एक्टिविटी में बदलाव का भी ब्लड शुगर लेवल पर काफी इफेक्ट पड़ता है।
दूसरी ओर कई व्यक्तियों के लिए भोजन के साथ-साथ एक्टिव रिस्ट्रेक्शन को पूरी तरह से फॉलो करना कठिन होता है क्योंकि स्लाइडिंग स्केल कार्ब खपत(कंजम्पशन), भोजन के समय और साथ ही एक्सरसाइज में बदलाव की इजाजत नहीं देता है। इसलिए पूरे दिन ब्लड शुगर लेवल में काफी बदलाव हो सकता है। मेडिकल एक्सपर्ट भी परेशान हैं कि स्लाइडिंग स्केल के साथ लगातार हाई शुगर लेवल के कुछ खतरे भी आते हैं।
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हाई-ब्लड ग्लूकोज
रिसर्च में पाया गया कि स्लाइडिंग स्केल का इस्तेमाल करने से शुगर कंट्रोल में सुधार नहीं हुआ लेकिन इससे बार-बार हाई ब्लड ग्लूकोज या हाइपरग्लेसेमिया के लक्षण दिखते हैं।
लो-ब्लड शुगर
यदि कोई व्यक्ति भोजन से चूक जाता है या किसी दिन ज्यादा इंसुलिन सेंसटिव होता है, तो चार्ट पर दिखाई देने वाली डोज बहुत अधिक हो सकती है। जैसे-जैसे ये डोज दिन में ली जाती हैं, वे ब्लड शुगर लेवल में खतरनाक गिरावट ला सकती हैं। यह जल्द ही एक सीरियस इमरजेंसी सिचुएशन में बदल सकती है, जिससे कोमा और शायद मौत भी हो सकती है।
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स्लाइडिंग स्केल इंसुलिन के विकल्प
स्लाइडिंग स्केल मॉडल के बजाय, एडीए इंसुलिन का इस्तेमाल करने के अन्य तरीकों का सुझाव देता है।
पारंपरिक इंसुलिन थेरेपी
इस उपचार में निम्नलिखित इंजेक्शन शामिल हैं
लंबे समय तक काम करने वाला इंसुलिन
प्रति दिन एक डोज। इस तरीके को प्रभावी बनाने के लिए व्यक्ति को दैनिक आधार पर एक ही समय पर अपना भोजन करना चाहिए नहीं तो ब्लड शुगर में न चाहते हुए भी दिक्कत हो सकती है।
अल्पकालिक इंसुलिन
एक व्यक्ति हर रोज इंसुलिन की दो से तीन डोज लेता है। डोज हर दिन समान होती है और भोजन से पहले ब्लड शुगर लेवल की मॉनिटरिंग होती है।
इंसुलिन पेन
एक व्यक्ति इंसुलिन इंजेक्ट करने के लिए इंसुलिन पेन का इस्तेमाल कर सकता है। ये पेन परिवर्तनीय हैं ताकि एक ही समय में अलग-अलग डोज इंजेक्ट की जा सकें। सिरिंज की तुलना में यह पेन इस्तेमाल में काफी सरल है। यह प्रीफिल्ड या रीफिल हो सकने वाले डिवाइस के रूप में उपलब्ध है।
इंटेंसिव इंसुलिन थेरेपी
इस थेरेपी में 3 प्रकार की इंसुलिन डोज शामिल हैं। इस साधन को बेसल-बोलस थेरेपी या सख्त नियंत्रण भी कहा जाता है। एक व्यक्ति को अपने शुगर के लेवल को अपने आइडियल लेवल के जितना करीब हो सके बनाए रखने के लिए रोज मॉनिटरिंग की जरूरत होती है । थेरेपी वास्तविक समय में उन फैक्टर्स को संतुलित करती है जो ब्लड शुगर के लेवल और इंसुलिन सेंसटिविटी पर प्रभाव डालते हैं। यदि कोई व्यक्ति सही तरीके से इसका पालन करता है तो थेरेपी प्रभावी पाई जाती है, लेकिन इसका इस्तेमाल करना मुश्किल हो सकता है।
इंसुलिन पंप थेरेपी के फायदे और नुकसान
बहुत से लोग जिन्हें इंसुलिन की जरूरत होती है वे इंसुलिन पंप का इस्तेमाल करते हैं। इसका प्रभाव भी बेसल-बोलस इंसुलिन के समान है लेकिन यह नियमित इंजेक्शन की जरूरत को खत्म कर देता है। इंसुलिन पंप एक छोटा डिजिटल डिवाइस है । जो पूरे दिन इंसुलिन की जरूरत को पूरा करता है। व्यक्ति को अपने शरीर पर पंप पहनने की जरूरत होती है। पंप से इंसुलिन एक छोटी ट्यूब के साथ-साथ एक सुई के माध्यम से शरीर में पहुंचता है। एक व्यक्ति को पंप को प्रोग्राम करने के लिए अपने डॉक्टर के साथ काम करना होगा और साथ ही यह भी तय करना होगा कि उन्हें कौन सी डोज की जरूरत है। उन्हें अभी भी भोजन के समय या फिजिकल एक्टिविटी करने के बाद इंसुलिन का इंजेक्शन लगाने की जरूरत हो सकती है। इंसुलिन थेरेपी के अन्य साधनों की तरह, उन्हें भी रेगुलर बेसिस पर अपने शुगर लेवल की जांच करने की जरूरत होगी।
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स्लाइडिंग-स्केल इंसुलिन थेरेपी के साथ समस्याएं
स्लाइडिंग-स्केल इंसुलिन थेरेपी के इस्तेमाल के बारे में कुछ परेशानियां हैं-
डाइट
कोई व्यक्ति जो खाता है उसका इंसुलिन की जरूरत पर बहुत प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति कार्ब्स से भरपूर डाइट लेता है तो लो-कार्ब वाले डाइट की तुलना में इंसुलिन की अधिक डोज की जरूरत होती है।
वेट (वजन) फैक्टर
वजन के आधार पर इंसुलिन डोज कैसे काउंट करें? अधिक वजन वाले व्यक्ति को अधिक इंसुलिन की जरूरत हो सकती है। चाहे व्यक्ति का वजन 120 पाउंड हो या 180 पाउंड। हर व्यक्ति को समान डोज मिल सकती है। 180 पाउंड वजन वाले व्यक्तियों को अपने ब्लड शुगर के लेवल को कम करने के लिए जरूरी इंसुलिन नहीं मिल पाता है।
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इंसुलिन का इतिहास
डोज यह नहीं बताती है कि किसी व्यक्ति को अतीत में कितनी इंसुलिन की जरूरत हो सकती है। साथ ही, यह इस बात पर विचार करने में भी विफल रहता है कि व्यक्ति का शरीर इंसुलिन के प्रभावों के प्रति कितना सेंसटिव है।
सारांश
प्रभावी ब्लड शुगर मैनेजमेंट इन समस्याओं को होने से रोकने का एक शानदार तरीका है। यह व्यक्तियों को लंबा और हेल्दी जीवन जीने में भी सहायता करता है। एक प्रभावी और कम डोज वाली रेगुलर इंसुलिन स्लाइडिंग स्केल थेरेपी के लिए व्यक्ति को बढ़िया लाइफस्टाइल की जरूरत होती है।
Last Updated on by Dr. Damanjit Duggal
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